भारत का पहला न्यूक्लियर टेस्ट जिसने बदल दी दुनिया: बौखलाया था अमेरिका-चीन; 20 रुपए बीघा पर खरीदी गई टेस्टिंग साइट

भारत के परमाणु इतिहास में 18 मई 1974 का दिन स्वर्णाक्षरों में लिखा गया। इस दिन भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसे “स्माइलिंग बुद्धा” (Smiling Buddha) नाम दिया गया था। इस परीक्षण ने न केवल भारत को विश्व परमाणु मानचित्र पर स्थापित किया, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी एक नई हलचल मचा दी। अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली देश इस घटना से हिल उठे थे, क्योंकि यह उनके लिए अप्रत्याशित और रणनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण था।

टेस्टिंग साइट की कहानी: 20 रुपए बीघा में खरीदी गई थी ज़मीन
पोखरण, राजस्थान के थार मरुस्थल में स्थित एक छोटा सा गांव है। इस वीरान इलाके को भारत सरकार ने एकदम गोपनीय तरीके से चुना था, ताकि कोई भी विदेशी एजेंसी इसकी भनक न लगा सके। टेस्टिंग साइट के लिए ज़मीन ग्रामीणों से खरीदी गई थी और चौंकाने वाली बात यह है कि यह ज़मीन मात्र 20 रुपए प्रति बीघा के हिसाब से खरीदी गई थी।

सरकार ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC) की टीम को यह कार्य सौंपा। उन्होंने इस बंजर ज़मीन को एक अत्याधुनिक परीक्षण स्थल में बदल दिया। ज़मीन की बनावट और निर्जनता इस कार्य के लिए उपयुक्त थी, जिससे परीक्षण को गुप्त रखने में मदद मिली।

कैसे पहुंचा परीक्षण स्थल तक सारा सामान?
इस ऑपरेशन को इतना गुप्त रखा गया था कि देश के भीतर ही बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी थी। सभी आवश्यक उपकरण और पुर्जे फ्लाइट, ट्रकों और यहां तक कि बैलगाड़ियों के जरिए पोखरण तक पहुंचाए गए। वैज्ञानिकों ने सामान्य पोशाकों में, एकदम आम नागरिकों की तरह काम किया ताकि कोई शक न करे।

भारत सरकार ने इसे एक “मिट्टी परीक्षण” बताया था। टेस्टिंग साइट पर दिन-रात काम हुआ, लेकिन कोई बाहरी व्यक्ति नहीं जान सका कि कुछ बड़ा होने वाला है। यह गुप्त ऑपरेशन “स्माइलिंग बुद्धा” के नाम से चलाया गया और इसकी तैयारी में करीब दो साल का समय लगा।

18 मई 1974: जब धरती कांप उठी
सुबह के करीब 8:05 बजे, भारत ने पोखरण में सफलतापूर्वक अपना पहला परमाणु परीक्षण किया। जैसे ही बटन दबाया गया, जमीन कुछ सेकंड तक कांप उठी, और एक विशाल धुएं का गुबार आसमान में छा गया। यह एक शांतिपूर्ण परीक्षण था, लेकिन इसका संदेश बहुत स्पष्ट था – भारत अब परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन चुका है।

उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस परीक्षण को देश की “सुरक्षा और आत्मनिर्भरता” के लिए आवश्यक कदम बताया। उन्होंने इसे एक “शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट” कहा, लेकिन दुनिया भर में इसके रणनीतिक निहितार्थों की गूंज सुनाई दी।

अमेरिका और चीन की बौखलाहट
भारत के इस कदम ने दुनिया भर के देशों को चौंका दिया, खासकर अमेरिका और चीन को। अमेरिका, जो उस समय शीत युद्ध के दौर से गुजर रहा था, भारत के इस परीक्षण से नाराज हो गया। अमेरिका ने तुरंत भारत को दी जाने वाली सहायता में कटौती की और कई प्रकार के प्रतिबंध लगाए।

चीन, जो पहले ही 1964 में परमाणु शक्ति बन चुका था, भारत के इस कदम से बेचैन हो उठा। चीन को डर था कि भारत की बढ़ती ताकत उसके लिए खतरा बन सकती है, खासकर सीमा विवादों को देखते हुए। दोनों देशों के बीच पहले से ही तनाव था, और परमाणु परीक्षण ने उस तनाव को और अधिक बढ़ा दिया।

विश्व समुदाय की प्रतिक्रिया
भारत के इस परीक्षण को संयुक्त राष्ट्र और अन्य परमाणु शक्तियों ने गंभीरता से लिया। दुनिया के कई देशों ने भारत की आलोचना की और इसे परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के खिलाफ बताया। लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि वह NPT पर हस्ताक्षर नहीं करेगा, क्योंकि यह संधि विकासशील देशों के साथ भेदभाव करती है।

भारत ने यह भी कहा कि यह परीक्षण आत्मरक्षा के लिए है, न कि आक्रामकता के लिए। यही कारण है कि भारत ने “नो फर्स्ट यूज” (पहले हमला नहीं करेगा) की नीति अपनाई, जो आज भी भारत की परमाणु नीति का मूल आधार है।

वैज्ञानिकों की मेहनत और गुमनामी
इस ऐतिहासिक उपलब्धि के पीछे कई वैज्ञानिकों का योगदान रहा, जिनमें डॉ. राजा रमन्ना, डॉ. पी.के. अयंगर, और डॉ. हومي सेठना जैसे नाम प्रमुख हैं। इन सभी ने भारी जोखिम उठाकर, कठिन परिस्थितियों में, बेहद गोपनीय तरीके से यह कार्य किया।

दिलचस्प बात यह है कि इन वैज्ञानिकों को लंबे समय तक कोई सार्वजनिक पहचान नहीं मिली। यह ऑपरेशन इतना गुप्त था कि कई सालों तक इनकी भूमिका पर पर्दा पड़ा रहा।

भारत की वैश्विक स्थिति में बदलाव
इस परीक्षण के बाद भारत की वैश्विक स्थिति में बड़ा बदलाव आया। अब भारत को सैन्य और रणनीतिक मामलों में गंभीरता से लिया जाने लगा। यह भारत की स्वदेशी वैज्ञानिक क्षमता और रणनीतिक सोच का प्रमाण था।

हालांकि इस परीक्षण के बाद भारत ने लगभग 24 वर्षों तक कोई और परीक्षण नहीं किया। लेकिन 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने पोखरण-2 परीक्षण करके फिर से दुनिया को चौंका दिया और भारत को एक “औपचारिक परमाणु शक्ति” के रूप में स्थापित कर दिया।

निष्कर्ष: एक ऐतिहासिक मोड़
1974 का परमाणु परीक्षण सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, यह भारत के आत्मविश्वास, संप्रभुता और सुरक्षा का प्रतीक था। इस परीक्षण ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब केवल एक विकासशील देश नहीं, बल्कि एक उभरती महाशक्ति है जो अपनी रक्षा खुद कर सकता है।

इस परीक्षण ने यह भी सिखाया कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, वैज्ञानिक क्षमता हो, और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हों, तो कोई भी देश असंभव को संभव बना सकता है।

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